सुरए आले इमरान

*सुरए आले इमरान, रुकुअ-5, आयत, ⑤③*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ
اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ
ऐ रब हमारे हम उस पर ईमान लाए जो तूने उतारा और रसूल के ताबे (अधीन) हुए तू हमें हक़ पर गवाही देने वालों में लिख ले.

*सुरए आले इमरान, रुकुअ-5, आयत, ⑤④*
और काफ़िरों ने मक्र (कपट) किया (23) और अल्लाह ने उनके हलाक की छुपवां तदबीर (युक्ति) फ़रमाई और अल्लाह सबसे बेहतर छुपी तदबीर वाला है (24)

*तफ़सीर*
(23) यानी बनी इस्त्राईल के काफ़िरों ने हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के साथ कपट किया कि धोखे के साथ आपके क़त्ल का इन्तिज़ाम किया और अपने एक आदमी को इस काम पर लगा दिया.
(24) अल्लाह तआला ने उनके कपट का यह बदला दिया कि हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को आसमान पर उठा लिया और उस आदमी को हज़रत की शक्ल दे दी जो उनके क़त्ल के लिये तैयार हुआ था. चुनांचे यहूदियों ने उसको इसी शुबह पर क़त्ल कर दिया. “मक्र” शब्द अरब में “सत्र” यानी छुपाने के मानी में है, इसीलिये छुपवाँ तदबीर को भी “मक्र” कहते हैं. और वह तदबीर अगर अच्छे मक़सद के लिये हो तो अच्छी और किसी बुरे काम के लिये हो तो नापसन्दीदा होती है. मगर उर्दू ज़बान में यह शब्द धोखे के मानी में इस्तेमाल होता है. इसलिये अल्लाह के बारे में हरगिज़ न कहा जाएगा और अब चूंकि अरबी में भी यह शब्द बुरे मतलब में इस्तेमाल होने लगा है इसलिये अरबी में भी अल्लाह की शान में इसका इस्तेमाल जायज़ नहीं. आयत में जहाँ कहीं आया वह छुपवाँ तदबीर के मानी में है.
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*

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