Allah Ta'ala Ki Baargah me Uske Mehboob Bando ko waseela banana

✔ Hadees
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*_Hazrate Usman Bin Hunaif رضي الله عنه se marvi hai ki ek Sahab jo Naabina the Huzoor Nabi E Kareem ﷺ ki khidmat me Haazir hue aur Arz kiya Yaa Rasoolullah ﷺ mere liye Allah Ta'ala se dua kijiye ki meri binayi wapas Aa jaye to Huzoor ﷺ ne irshad farmaya ki tum chaho to main dua karu agar chaho to sabr karo aur ye sabr karna zyada accha hai wo sahab farmane lage Huzoor Dua farma dijiye to Rasoolullah ﷺ ne unko huqm diya wo achhi tarah Wuzoo kare aur fir ye dua padhe_*

➡ *Aye Allah Main Tujhse Dua Mangta hu aur tere Taraf teri Nabi Muhammed  ﷺ ko waseela banakar mutawajjah hota hu jo Rehmat wale Nabi hai Aur Yaa Rasoolullah ﷺ main Aap ke waseele se Apne Rab se Dua karta hu Taaqi meri ye haajat puri ho aur Aye Allah tu Huzoor ﷺ ki Shafa'at mere haq mein qubool farma*

📓 *Tirmizi Jild 2 Safa 196*
📗 *Mishkat Safa 219*

➡ *_Is Hadees mein naabina Sahabi ka Huzoor ﷺ ki khidmat mein Apni haajat barayi ke liye jana waseela hai aur Huzoor ﷺ ne inko jo dua taalim farmayi isme bhi Apne Waseele se dua mangne ka huqm diya Is hadees mein Rasoolullah ﷺ ko waseela banane Aap ki taraf mutawajjah hone balqi Aap ko Haazir ke seege se pukarne ka bhi zikr hai Yani Yaa Rasoolullah  ﷺ kehna bhi jayaz hai_*

🌴 *Ba-Khuda  Khuda ka Yahi Hai Dar Nahi Aur Koi Mafar Maqar*
*Jo Wahan Se Ho Yahin Aake Ho Jo Yahan Nahin To Wahan Nahin* 🌴

हज़रत उमर رضي الله ﺗﻌﺎﻟﯽٰ عنه का बहुत प्यारा वाकिया

अरब का एक बद्दू अपनी बीवी के साथ मदीना आ रहा था उसको आते रात हो गई तो उसने ख़ेमा मदीना शहर के बाहर ही लगा लिया। उसकी बीवी उम्मीद से (प्रेग्नेंट)थी और बच्चे की विलादत का वक़्त करीब आ गया।
हज़रत उमर उस वक़्त गश्त पर थे और साथ एक गुलाम था हज़रत उमर कहने लगे वो आग जल रही है पता करो वहाँ कौन है? जब गुलाम पता करने उस के पास गया बद्दू ने डाँटते हुए कहाँ जाओ तुम्हे क्यों बताऊँ। फिर हज़रत उमर खुद गए और कहाँ मुसाफ़िर भाई बताओं तो सही आप कौन हो?
वो बद्दू कहने लगा छोड़े मैं क्यूँ बताऊँ मैं कौन हूँ, कैसे आया हूँ।

इतने में ख़ेमे के अन्दर से किसी के कराहने की आवाज़ आती है कोई दर्द से चीख़ रहा है। फिर हज़रत उमर ने फरमाया बता बात क्या है? वो कहने लगा मैं फलाँ बस्ती, फलाँ इलाके का एक गरीब आदमी हुँ अमीरुल मोमिनीन हज़रत उमर رضي الله ﺗﻌﺎﻟﯽٰ عنه से मिलने आया हुँ लेकिन रात हो गई तो यहीं ख़ेमा लगा लिया सुबह मैं उनसे मिलकर चला जाऊँगा, तो रात को तकलीफ देना पसन्द नही किया।
अब मेरी बीवी उम्मीद से है बच्चे की विलादत का वक़्त करीब है और मेरे पास कोई नही जो मेरी बीवी को संभाल सकें।

हज़रत उमर ने कहाँ तू ठहर मैं अभी आया आप के चेहरे पे नक़ाब था और उस बद्दू को बताया भी नही की मैं ही अमीरुल मोमिनीन हूँ।
हज़रत उमर जल्दी से घर गए और अपनी जौज़ा से फ़रमाया अगर तुझे बहुत बड़ा अज़्र मिलना वाला होतो तू हासिल करेंगी? जौज़ा कहने लिए जी करूँगी। तो आप ने फरमाया चलो मेरे साथ एक दोस्त के यहाँ बच्चे की विलादत का वक़्त है ज़रूरत की चीज़ें साथ लेलो। आपकी जौज़ा ने थोड़े दाने ले लिए, घी ले लिया और हज़रत उमर से कहने लगी कि लकड़ियाँ जमा कर लीजिए।हज़रत उमर ने लकड़ियाँ जमा की मिट्टी का चूल्हा साथ लिया और वहाँ पहुंचे।

आपकी जौज़ा कहने लगी ये दाने और घी डाले और लकड़ी लेकर इसे हिलाए और तैय्यार करें फिर खुद अन्दर ख़ेमे में चली गई, बाहर हज़रत उमर पकाने लगे।

वो बद्दू सब देख रहा था और आपके साथ इस तरह का रवैय्या करने लगा जैसे किसी काम करने वाले नोकर के साथ किया जाता है, बद्दू समझा ये हज़रत उमर ने चौकीदार नोकर रखें है जो आने-जाने वाले मेहमानों का काम करते है। वो कभी हज़रत उमर से पानी माँगता, कभी कुछ काम बताता। हज़रत उमर फ़ौरन जल्दी से उसका काम करते। वो बद्दू कहता है तुझे घी पकाना भी आता है? इससे पहले भी कभी पकाया है? हज़रत उमर फ़रमाते कोशिश कर रहा हूं। बद्दू कहता पहले कभी तेरी बीवी ने ये काम किया है?? हज़रत उमर कहने लगे मुझे याद नही पूछकर बताऊँगा।।

इतने में हज़रत उमर की जौज़ा ख़ेमे के अन्दर से बोलती हैं "अमीरुल मोमिनीन मुबारक हो आपके दोस्त के यहाँ बेटा पैदा हुआ है।"

जब आपकी जौज़ा ने कहाँ अमीरुल मोमिनीन मुबारक हो तो उस बद्दू के हाथ काँपने लगे और वो इस तरह दौड़ा की उसकी पगड़ी गिर गई। जब वो भागने लगा तो हज़रत उमर رضي الله ﺗﻌﺎﻟﯽٰ عنه ने उसे बुलाया और कहने लगें किधर जा रहे हो??

वो बद्दू कहने लगा आप अमीरुल मोमिनीन है? आप हज़रत उमर है?
केसरों-किसरा जिसके नाम से काँपते है आप वो है?

जिसे मुस्तफा ﷺ ने दुआँ माँगकर अल्लाह से माँगा आप वो है?

जिसके बारे में हज़रत अबू बक़र رضي الله ﺗﻌﺎﻟﯽٰ عنه ने फ़रमाया था  मैं अल्लाह से कहूँगा की तेरे मेहबूब ﷺ की उम्मत के हक़ में जो सबसे बेहतर था उसे मैं ख़लीफ़ा बना के आया हूँ आप वो उमर है??

अमीरुल मोमिनीन की बीवी तो ख़ातून-ए-अव्वल होती है, वो तो मलिका होती है और आपकी बीवी दाई बनकर एक गरीब के बच्चे के पास बैठी रही विलादत के वक़्त।
उमर अमीरुल मोमिनीन होकर आपकी दाढ़ी सारी धुँए से भर गई आप मेरी नोकरी करते रहे।

जब उसने यह बातें कही तो  हज़रत उमर रो पड़े उस बद्दू को सीने से लगाकर कहने लगे तुझे पता नही तू कहाँ है, इस शहर का पता है?
उसने कहाँ आया हूँ?

आपने फ़रमाया ये मेरे नबी ﷺ का मदीना है ये मुस्तफा करीम ﷺ का मदीना है। यहाँ अमीरों के इस्तक़बाल नही होते यहाँ गरीबो के इस्तक़बाल होते है।
यहाँ मेरे नबी ﷺ ने वो रंग दिया है कि गरीब सर उठाकर जीने लगे है और अब मज़दूरो को इज़्ज़ते मिलने लगी है। अब यतीम, बेवा, बेसहारा कहते है कि हमारा कोई सुनने वाला आ गया है!!!
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दोस्तों,,, ये वाकिया किसी MLA, MP, CM, PM का नही जो लोगों के वोटों पर इक़तिदार के नशे में चूर होते है।

ये उनकी बात है जो 22 लाख मुरब्बा मील के हुक्मरान है आधी दुनिया के बादशाह है।
ये उनकी बात है जो जिस गली से गुज़र तो उधर से शैतान रास्ता बदल देता है।
ये उनकी बात है जिनके बारे में नबी-ए-करीम ﷺ ने फरमाया मेरा उमर वो है कि साढ़े नौ सौ साल हज़रत जिब्राइल भी इसकी शान बयान करे तो अज़मत ख़त्म नही होती।

अल्लाहु अक़बर,,, क्या रंग था, क्या अंदाज़, क्या मुस्तफ़ा करीम ﷺ की तरबियत थी।

ये थे अस्ल हुक्मरान जिनको रहती दुनिया तक कोई भुला नही सकता....

करे सवार   ऊँट पे   अपने गुलाम को
पैदल ही खुद चले वो आक़ा तलाश कर
      🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

👑Ziqr-E-Usman💝

*ذِکر خلیفۃ المسلمین سیدنا عمر فاروق رضی اللہ تعالٰی عنہ*
*پیشکش سنی حسینی مشن مالیگاؤں*
*26 ذی الحج یومِ شہادت پر سنی حسینی مشن مالیگاؤں کی جانب سے خصوصی مضمون*
خلیفہ دوم حضرت سیدنا عمر فاروق رضی اللہ عنہ اسلام کی وہ عظیم شخصیت ہیں کہ جن کی اسلام کے لئے روشن خدمات، جرات و بہادری، عدل و انصاف پر مبنی فیصلوں، فتوحات اور شاندار کردار اور کارناموں سے اسلام کا چہرہ روشن ہے۔
سیدنا عمر بن خطاب رضی اللہ عنہ تاریخ انسانی کا ایسا نام ہے جس کی عظمت کو اپنے ہی نہیں بیگانے بھی تسلیم کرتے ہیں۔ وہ نبی نہیں تھے مگر اللہ نے ان کی زبان حق پر وہ مضامین جاری کردیئے جو وحی کا حصہ بن گئے۔ قبول اسلام کے بعد وہ اسلام اور پیغمبر اسلام کے شیدائی بن کر فاروق کہلائے۔
تعارف
آپ رضی اللہ عنہ کا نام عمر بن خطاب، لقب فاروق اور کنیت ابو حفص ہے۔ آپ رضی اللہ عنہ کا سلسلہ نسب نویں پشت میں حضور نبی اکرم صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم سے جا ملتا ہے۔ آپ رضی اللہ عنہ سے قبل چالیس مرد اور گیارہ عورتیں نور ایمان سے منور ہوچکی تھیں۔
آپ رضی اللہ عنہ ’’عام الفیل‘‘ کے تقریباً 13 سال بعد مکہ مکرمہ میں پیدا ہوئے اور نبوت کے چھٹے سال پینتیس سال کی عمر میں مشرف بہ اسلام ہوکر حرم ایمان میں داخل ہوئے۔
*ان شا اللہ بقیہ کل*
✊یــــــــــــــــــــــــــــا رسول  الــــلّٰــــه ﷺ ⚘                      
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                   *⚘【 ﷽】⚘*
 
             *12 रबि उल अव्वल *
                                         
         *⚘मेरे मुस्तफ़ा ﷺ का मीलाद,✍*
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        ⊰❂⊱ *शरीअत की रौशनी में* ⊰❂⊱
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•••∘⊱ पहले ये जानले की एहले सुन्नत के नज़्दीक ईदे मिलादुन्नबी ﷺ मनाना कोई फ़र्ज़ या वाजिब नहीं, ये मुस्तहब अ'मल है। जो करे उसको षवाब मिलेगा और जो न करे उस पर कोई गुनाह नहीं।
•••∘⊱ अब बात ये आती है की क्या इस्लाम हमें इजाज़त देता है ईदे मिलादुन्नबी ﷺ मानाने की या नहीं
•••∘⊱ इसका जवाब ये है की क़ुरआनो हदिष की रौशनी में मिलादुन्नबी मनाना बिलकुल जाइज़ है।
•••∘⊱ कोई भी दूसरे मसलक का आ'लिम आज तक शरई दलील मिलाद के हराम या नाजाइज़ होने की न आज तक ला सका है और न ला सकेगा। ان شاء الله
•••∘⊱ आगे आने वाली पोस्ट में हम जानेंगे की किस तरह ईदे मिलाद ﷺ मनाना जाइज़ है क़ुरआनो हदिष की रौशनी में !
•••∘⊱ 12वी शरीफ की निस्बत से ये 12 टॉपिक जो निचे दिये गये है और मजीद कुछ पॉइंट भी कवर करने की कोशिश की जायेगी।
✔आक़ा  ए करीम ﷺ की विलाद कब हुई
✔क़ुरआन क्या फरमाता है
✔आप ﷺ ने क्या अपना मिलाद मनाया
और आप ﷺ ने अपने मिलाद के मुतअल्लिक़ क्या फ़रमाया
✔क्या किसी सहाबी ने ईदे मिलादुन्नबी ﷺ मनाई है
✔अबू लहब ने भी मिलाद मनाया...
✔जुलूस निकालना किसकी सुन्नत
✔जन्डे लगाना किसकी सुन्नत
✔नात शरीफ पढ़ना किसकी सुन्नत
✔मिलाद पर खर्च करना कैसा
✔शैतान की रुस्वाई...
✔शबे क़द्र से भी अफ़्ज़ल रात....
✔किस किस आइम्ह व मुहद्दिसिन ने मिलादुन्नबी ﷺ को जाइज़ कहा है

یُخٰدِعُوْنَ اللّٰهَ وَ الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا ۚ-وَ مَا یَخْدَعُوْنَ اِلَّاۤ اَنْفُسَهُمْ وَ مَا یَشْعُرُوْنَؕ(۹)

*ترجمہ*

یہ لوگ اللہ کو اور ایمان والوں کو فریب دینا چاہتے ہیں حالانکہ یہ صرف اپنے آپ کو فریب دے رہے ہیں اور انہیں شعور نہیں ۔

*تفسیر*

{یُخٰدِعُوْنَ اللّٰهَ : وہ اللہ کو دھوکہ دینا چاہتے ہیں۔}اللہ تعالیٰ اس سے پاک ہے کہ اسے کوئی دھوکا دے سکے، وہ تمام پوشیدہ باتوں کا جاننے والا ہے ۔ یہاں مراد یہ ہے کہ منافقوں کے طرزِ عمل سے یوں لگتا ہے کہ وہ خدا کو فریب دینا چاہتے ہیں یا یہ کہ خدا کو فریب دینا یہی ہے کہ وہ رسول اللہ صَلَّی اللہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّمَکو دھوکا دینا چاہتے ہیں کیونکہ حضور پرنور صَلَّی اللہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّمَاللہ تعالیٰ کے نائب اور خلیفہ ہیں اور انہیں دھوکہ دینے کی کوشش گویا خدا کو دھوکہ دینے کی طرح ہے لیکن چونکہ اللہ  تعالیٰ نے اپنے حبیب صَلَّی اللہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّمَکو منافقین کے اندرونی کفر پر مطلع فرمایا تو یوں اِن بے دینوں کا فریب نہ خدا پر چلے، نہ رسول پراور نہ مومنین پر بلکہ درحقیقت وہ اپنی جانوں کو فریب دے رہے ہیں اور یہ ایسے غافل ہیں کہ انہیں ا س چیز کا شعور ہی نہیں۔
ظاہر وباطن کا تضاد بہت بڑا عیب ہے:

            اس آیت سے معلوم ہوا کہ ظاہر وباطن کا تضاد بہت بڑا عیب ہے۔ یہ منافقت ایمان کے اندر ہوتو سب سے بدتر ہے اور اگر عمل میں ہو تو ایمان میں منافقت سے تو کم تر ہے لیکن فی نفسہ سخت خبیث ہے، جس آدمی کے قول و فعل اور ظاہر و باطن میں تضاد ہوگا تو لوگوں کی نظر میں وہ سخت قابلِ نفرت ہوگا۔ ایمان میں منافقت مخصوص لوگوں میں پائی جاتی ہے جبکہ عملی منافقت ہر سطح کے لوگوں میں پائی جاسکتی ہے۔

शहीद_ए_आज़म 👑💕🌹

ईमाम_ए_हुसैन

​अल्लाहुम्मा सल्ले वसल्लिम वबारिक अलैहि व अलैहिम व अलल मौलस सय्यदिल इमामे हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु​

नाम ----- सय्यदना इमाम ​हुसैन​ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु

लक़ब ---- सिब्ते रसूल,रैहानतुर रसूल,सय्यदुश शुहदा

वालिद --- मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु

वालिदा -- खातूने जन्नत हज़रत फातिमा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा

विलादत - 5 शाबान,4 हिजरी

बीवियां  - 4,शहर बानो-रुबाब बिन्त इमरा अलक़ैस-लाईला बिन्त अबी मुर्राह अल थक़ाफी,उम्मे इस्हाक़ बिन्त तल्हा बिन उबैदुल्लाह

औलाद  -- 6,हज़रत ज़ैनुल आबेदीन व हज़रते सकीना शहर बानो से,हज़रत अली अकबर व फातिमा सुग़रा लाईला से,हज़रत अली असगर व सुकैना रुबाब से

विसाल --- 10 मुहर्रम,61 हिजरी,जुमा

उम्र    --  56 साल 5 महीने 5 दिन

आपके फज़ाइल में बेशुमार हदीसें वारिद हैं हुसूले बरकत के लिए चंद यहां ज़िक्र करता हूं

​हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि हुसैन मुझसे है और मैं हुसैन से हूं और फरमाते हैं कि जिसने हुसैन से मोहब्बत की उसने अल्लाह से मोहब्बत की​

📕 मिशकातत,सफह 571

​हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जो चाहता है कि जन्नती जवानों के सरदार को देखे तो वो हुसैन को देख ले​

📕 नूरुल अबसार,सफह 114

​हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने एक मर्तबा इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को देखकर फरमाया कि आज यह आसमान वालों के नज़दीक तमाम ज़मीन वालों से अफज़ल है​

📕 अश्शर्फुल मोअब्बद,सफह 65

​हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु पर अपने बेटे हज़रत इब्राहीम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को क़ुर्बान कर दिया​

📕 शवाहिदुन नुबुवत,सफह 305

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि हसन के लिए मेरी हैबत व सियादत है और हुसैन के लिए मेरी ज़ुर्रत व सखावत है

📕 अश्शर्फुल मोअब्बद,सफह 72

​इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु बहुत बड़ी फज़ीलत के मालिक हैं आप कसरत से नमाज़-रोज़ा-हज-सदक़ा व दीग़र उमूरे खैर अदा फरमाते थे,आपने पैदल चलकर 25 हज किये​

📕 बरकाते आले रसूल,सफह 145

​करामात​

अबु औन फरमाते हैं कि एक मर्तबा हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का गुज़र कस्बा इब्ने मुतीअ के पास से हुआ,वहां एक कुंआ था जिसमे पानी बहुत कम रह गया था यहां तक कि डोल भी भरकर ऊपर ना आ पाता था जब लोगों ने आपको देखा तो पानी की किल्लत की शिकायत की तो आपने फरमाया कि एक डोल पानी लाओ जब पानी आ गया तो आपने उसमें थे थोड़ा सा मुंह में लिया और डोल में कुल्ली कर दी और फरमाया कि इसे कुंअे में डाल दो,जैसे ही कुंअे में वो पानी डाला गया कुंआ पानी से लबरेज़ हो गया और पहले से ज़्यादा ज़ायकेदार भी हो गया

📕 इब्ने सअद,जिल्द 5,सफह 144

​ये वही हुसैन बिन अली हैं जिन पर कर्बला में 3 दिन तक पानी बंद कर दिया गया मगर ये रब की रज़ा थी जिस पर आप राज़ी थे वरना कसम खुदा की आप ज़मीन पर एक ठोकर मार देते तो फुरात आपके खेमे से होकर बहती​!

अली को खालिक ए अकबर का ऐन कहते हे,
हसन को क़लब ए रिसालत का चैन कहते हे,
लुटा के घर को दीन ए खुदा की लाज़ रख ली,
ज़ुबान ए इश्क मे उसे हुसैन कहते हे.

#हक_हुसेन_               #मोला_हुसेन_

*_💔Daastaan E Karbala💔_*

*Shohda E Karbala*
_Qatle Hussain Asl Me Marge yazeed Hai_
_Islam Zinda Hota Hai Har Karbala Ke Baad_
ِ ال َّر ْح ٰم ِن ال َّر ِحْیِم
ِ ْسِم الله
ب
Alhamdulillahi Rabbil Aalameen.
Az Farsh Ta Arsh E Sama
Balaghal Ula Bikamalihi
Az Fouq Ta Tahtass Sara
Kasha Fadduja Bijamalihi
Khairul Bashar Khairul Wara
Hasunat Jamee'o Khisaalihi
Hazrath Muhammed Mustafa
SalluAlaihiWa Aalihi.
Allahumma Salle Ala Sayyidina o Moulana Muhammaddin Wa Aalihi Wa Ashabihi Wa
Barik Wa Sallim...
Ham Aap ko Fazaile Ahle Bait Aur Shohda e Karbala Ke Unwan Per Tehreer Ki Saadat
Hasil Karna Chahte Hain...Isliye Pehle “Shohda e Karbala" ke Meere Karwan Imam
Aali Maqam Hazrath Imam e HUSSAIN RadiAllahuAnhu Ke Shaan Me Ek Manqabat
Pesh Karte Hain..
Baghour Padhiye...
Kyun Khudayi Na Ho Dil-o-Jaan Se Qurbaan Hussain
BoSa Gahe Mustafa(SallahuAlaihiWaSallam) hai ShahRag e Jaane Hussain
Aaj Tak Hain Ghair Qoumen Bhi Sana Khwane Hussain
Allah Allah Kya AzeemushShan Hai Shane Hussain
Kaam Aaye Behre Haq Sab NouNihalane Hussaian
Hogaya NAzre Khizaan Sara Gulistane Hussain
MArhaba Ye HAq PArasti Ye Sadaqat Parwari
Hazrate Hur HoGAye Mukhtil Me Qurbane Hussain
Jaan Di Lekin Diya Hargiz Na Daste Haq Parast
Allah Allah Kis Qadar Mohkam tha Imaane Hussain
Ran Me Aate The Nazar Pushtoun ke Poshten Har Taraf
War Jab A'ada Pe Karte The Jawanane HUssain
Koi Kahtra Hi Nahi Shaghil Ku Roze Hashr Ka
Ta Abad Mehfooz Hai O Zeer e Damane Hussain.
RadiAllahuAnhumAjmaeen...

🍃महान मुगल बादशाह औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह की चवन्नी की कहानी!🍃

मुल्ला अहमद जीवन हिन्दुस्तान के महान मुगल बादशाह औरंगजेब आलमगीर के उस्ताद थे, औरंगजेब अपने उस्ताद का बहुत एहतराम करते थे, और उस्ताद भी अपने शागिर्द पर फख्र करते थे,
जब औरंगजेब हिन्दुस्तान के बादशाह बने तो उन्होंने अपने गुलाम के ज़रिए पैगाम भेजा कि वो किसी दिन देहली तशरीफ लायें और खिदमत का मौका दें, इत्तेफाक से वो रमज़ान का महीना था और मदरसे के तालिब इल्मों की छुट्टियाँ थी, चुनान्चे उन्होंने देहली का रूख किया,
उस्ताद और शागिर्द की मुलाकात अस्र की नमाज़ के बाद देहली की जामा मस्जिद में हुई, उस्ताद को अपने साथ लेकर औरंगज़ेब शाही किले की तरफ चल पड़े, रमजान का सारा महीना औरंगजेब और उस्ताद ने इकट्ठा गुज़ारा, ईद की नमाज़ इकट्ठा अदा करने के बाद मुल्ला जीवन ने वापसी का इरादा ज़ाहिर किया, बादशाह ने जेब से एक चवन्नी निकालकर अपने उस्ताद को पेश की, उस्ताद ने बड़ी खुशी से नज़राना कबूल किया और घर की तरफ चल पड़े
उसके बाद औरंगजेब दकिन की लड़ाइयों में इतने मसरूफ हुए कि चौदह साल तक देहली आना नसीब न हुआ, जब वो वापस आये तो वज़ीर आज़म ने बताया कि मुल्ला अहमद जीवन एक बहुत बड़े ज़मींदार बन चुके हैं, अगर इजाज़त हो तो उनसे लगान वसूल किया जाए, ये सुनकर औरंगजेब हैरान रह गए, कि एक गरीब उस्ताद किस तरह जमींदार बन सकता है, उन्होंने उस्ताद को खत लिखा और मिलने की ख्वाहिश ज़ाहिर की, मुल्ला जीवन पहले की तरह रमज़ान में तशरीफ लाये, औरंगजेब ने बड़ी इज़्ज़त के साथ उन्हें अपने पास ठहराया, मुल्ला अहमद जीवन का लिबास, बातचीत और तौर तरीके पहले की तरह सादा थे, इसलिए बादशाह को उनसे बड़ा जमींदार बनने के बारे में पूछने का हौसला न हुआ, एक दिन मुल्ला साहब खुद कहने लगे
आपने जो चवन्नी दी थी वो बड़ी बाबरकत थी, मैंने बनोला खरीदकर कपास कास्त की, खुदा ने उसमें इतनी बरकत दी कि चन्द सालों में सैकड़ों से लाखों हो गए, औरंगज़ेब ये सुनकर खुश हुए मुस्कुराने लगे और फरमाया: अगर इजाज़त हो तो चवन्नी की कहानी सुनाऊँ, मुल्ला साहब ने कहा जरूर सुनाएं
औरंगजेब ने अपने खादिम को हुक्म दिया कि चाँदनी चौक के “सेठ उत्तम” चन्द को फलाँ तारीख के खाते के साथ पेश करो, सेठ उत्तम चन्द एक मामूली बनिया था, उसे औरंगजेब के सामने पेश किया गया तो वो डर के मारे काँप रहा था, औरंगजेब ने नर्मी से कहा: आगे आ जाओ और बगैर किसी घबराहट के खाता खोलके खर्च की तफ्सील बयान करो,
सेठ उत्तम चन्द ने अपना खाता खोला और तारीख और खर्च की तफ्सील सुनाने लगा
मुल्ला अहमद जीवन और औरंगजेब खामोशी से सुनते रहे एक जगह आके सेठ रुक गया, यहाँ खर्चे के तौर पर एक चवन्नी दर्ज थी लेकिन उसके सामने लेने वाले का नाम नहीं था, औरंगजेब ने नर्मी से पूछा: हाँ बताओ ये चवन्नी कहां गई? ?
उत्तम चन्द ने खाता बन्द किया और कहने लगा: अगर इजाज़त हो तो दर्द भरी दास्तान अर्ज़ करूँ? ?
बादशाह ने कहा: इजाज़त है- उसने कहा, ऐ बादशाहे वक्त! एक रात बहुत तेज़ बारिश हुई मेरा मकान टपकने लगा, मकान नया-नया बना था और तमाम खाते की तफ्सील भी उसी मकान में थी, मैंने बड़ी कोशिश की लेकिन छत टपकता रहा, मैंने बाहर झाँका तो एक आदमी लालटेन के नीचे खड़ा नज़र आया–मैने मज़दूर ख्याल करते हुए पूछा, ऐ भाई मज़दूरी करोगे???
वो बोला क्यों नहीं, फिर वो आदमी काम पर लग गया उसने तकरीबन तीन चार घण्टा काम किया, जब मकान टपकना बन्द हो गया तो उसने अन्दर आकर तमाम सामान दुरुस्त किया, इतने में सुबह की अज़ान शुरू हो गई: वो कहने लगा: सेठ साहब! आपका काम मुकम्मल हो गया, मुझे इजाज़त दीजिए, मैंने उसे मज़दूरी देने की गर्ज़ से जेब में हाथ डाला तो एक चवन्नी निकली—मैंने उससे कहा: ऐ भाई!!! अभी मेरे पास ये चवन्नी है इसे ले लो, और सुबह दुकान पर आना तुम्हें मज़दूरी मिल जाएगी, वो कहने लगा यही चवन्नी काफी है मैं फिर हाजिर नहीं हो सकता, मैंने और मेरी बीवी ने बहुत मिन्नतें कीं, लेकिन वो न माना और कहने लगा देते हो तो ये चवन्नी दे दो वर्ना रहने दो, मैंने मजबूर होकर चवन्नी उसे दे दी और वो लेकर चला गया, और उसके बाद से आज तक न मिल सका, आज इस बात को पन्द्रह साल हो गए, मेरे दिल ने बहुत मलामत की कि उसे रूपया न सही अठन्नी तो दे देता,
उसके बाद उत्तम चन्द ने बादशाह से इजाजत चाही और चला गया, बादशाह ने मुल्ला साहब से कहा: ये वही चवन्नी है, क्योंकि मैं उस रात भेस बदलकर गया था ताकि जनता का हाल मालूम कर सकुँ, सो वहां मैंने मज़दूर तौर पर काम किया,
मुल्ला साहब खुश होकर कहने लगे, मुझे पहले ही मालूम था कि ये चवन्नी मेरे होनहार शागिर्द ने अपने हाथ से कमाई होगी, औरंगजेब ने कहा: हाँ असल बात यही है कि मैंने शाही ख़ज़ाने से अपने लिए कभी एक पाई भी नहीं ली, हफ्ते में दो दिन टोपियां बनाता हूं, दो दिन मज़दूरी करता हुँ, मैं खुश हूं ”कि मेरी वजह से किसी जरूरतमंद की ज़रूरत पूरी हुई ये सब आपकी दुआओं का नतीजा है”
📗(हवाला—-तारीख इस्लाम के दिलचस्प वाकयात)🌿💚🌿💚🌿💚🌿💚🌿💚🌿💚🌿

FIRST TEN DAYS AND NIGHTS OF MUHARRAM

1. Narrated from Ibn al-`Abbas (ر) that the Prophet (ص) said, “Whoever fasts the last day of Dhu ‘l-Hijjah and the first day of Muharram, he completes a whole year’s worth of fasting in that previous year, and Allah gives him penance for fifty [50] years.”

2. Narrated from Anas (ر)  that the Prophet (ص) said, “Whoever fasts the first Friday of Muharram Allah will forgive his preceding sins, and whoever fasts three days of Muharram – Thursday, Friday, and Saturday, Allah will write for him worship and prayers for nine hundred [900] years.”

3. Narrated from ‘A`ishah Umm al-Mu’minin (ر)  that the Prophet (ص) said, “Whoever fasts the first ten days up till `Ashura, he will inherit the Paradise al-Firdaws.”

4. Fasting of `Ashura is Sunnah Mu’akkadah, that which is highly desired. When the Prophet (ص) saw the Jews of Madinah fasting on that day, he asked them for what it was. They told him it was the day Musa (ع) led the Bani Isra’il from Pharaoh. The Prophet s.a.w. said, “I have more rights with Musa than you Jews.” So he fasted that day and ordered for its observance. This was part of a longer narration from ‘A`ishah (ر).

5. The Prophet (ص) said, “Whoever fasts the `Ashura (10th Muharram), Allah will write for him a thousand [1000] wishes and a thousand years of age, and will grant him the reward of a thousand martyrs, and will write for him the reward of Isma`il (ع), and writes for him seventy [70] palaces in paradise, and makes his flesh forbidden from the hellfire.”

6. In another Hadith the Prophet (ص) said, “Whoever fasts the `Ashura, he will be granted the reward of a thousand angels. And whoever recites “Qul Huwa Allahu Ahad” a thousand [1000] times on the day of `Ashura, Allah will glance at him with the Eyes of Mercy, and will write him from amongst the Siddiqin [The Truthful].”

7. In another Hadith the Prophet (ص) said, “Distinguish yourselves from the Jews by fasting either the day before `Ashura or the day after it as well.”
سبحان الله سبحان الله سبحان الله💖

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